यह अवसर फिर नहीं मिलने का,
सतसंग करो सतसंग करो,
यह वक्त नही हिल डुलने का,
सतसंग करो सतसंग करो।।
चाहे सारी दुनिया ठुकरावे,
चाहे धन संपत्ति सब लूट जावे,
चाहे थाली लोटा बिक जावे,
सतसंग करो सतसंग करो,
यह अवसर फिर नही मिलने का,
सतसंग करो सतसंग करो।।
चाहे तन में अधिक बिमारी हो,
प्रतिकूल चले नर नारी हो,
माने नहीं बात हमारी हो,
सतसंग करो सतसंग करो,
यह अवसर फिर नही मिलने का,
सतसंग करो सतसंग करो।।
अपमान अचानक हो जावे,
निज साथी सभी बिछुड़ जावे,
चाहे नित्य नयी आफत आवे,
सतसंग करो सतसंग करो,
यह अवसर फिर नही मिलने का,
सतसंग करो सतसंग करो।।
ऐ सुख सम्पति के अभिमानी,
करलो अचमन बहते पानी,
यहाँ चार दिनों की मेहमानी,
सतसंग करो सतसंग करो,
यह अवसर फिर नही मिलने का,
सतसंग करो सतसंग करो।।
व्यवहार सिखना है जिसको,
व्यापार सिखना है जिसको,
भव पार उतरना है जिसको,
सतसंग करो सतसंग करो,
यह अवसर फिर नही मिलने का,
सतसंग करो सतसंग करो।।
यह अवसर फिर नहीं मिलने का,
सतसंग करो सतसंग करो,
यह वक्त नही हिल डुलने का,
सतसंग करो सतसंग करो।।
स्वर – संत श्री रामप्रसाद जी महाराज।
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