वैशाख महीने की,
तो बात निराली है,
प्रभु अदभुत रूप लिये,
लीला दिखलाई है।।
तर्ज – एक प्यार का नगमा।
धरती पे मरू न नभ में,
न रात में नही दिन में,
न अस्त्र शस्त्र से मरू,
न मानव पशु जीव से,
ब्रहमा से वर पा कर,
दैत्य हिरणाकश्यप ने,
त्रिभुवन को वश में किया,
खुद को प्रभु मान लिया।।
नरसिंह का रूप धर के,
खम्बे से प्रगट हुए,
कण कण में बसा हूँ मैं,
भगतो की रक्षा के लिये,
तोड़ ब्रहमा के वर का,
प्रभु ने निकाल लिया,
हिरणाकश्यप को मार,
प्रहलाद का मान रखा।।
वैशाख महीने की,
तो बात निराली है,
प्रभु अदभुत रूप लिये,
लीला दिखलाई है।।
Singer – Swati Chandak
Upload By – Krishna Kumar Daga
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