उमर जाती है रे प्राणी जतन करले ओ अभिमानी

उमर जाती है रे प्राणी,
जतन करले ओ अभिमानी,
तजबीज कर कोई ऐसी,
कि नैया पार हो जाऐ।।

तर्ज – नजर आती नही मँजिल।



अब दूरी नही कोई बन्दे,

नैया और भँवर मे,
अब न भजा तो कल क्या भजेगा,
लटके पाँव कवर मे,
तजबीज कर कोई ऐसी,
कि नैया पार हो जाऐ।।



टेढ़ी कमर और हाथ मे लाठी,

साथ न देती जुबाँ है,
नखरे फिर भी करता कितने,
आज भी जैसे युवा हो,
तजबीज कर कोई ऐसी,
कि नैया पार हो जाऐ।।



जब तक साँस है तेरे तन मे,

करना तू हरि सुमिरन,
एक दिन माटी मे मिल जाए,
तेरी काया कँचन,
तजबीज कर कोई ऐसी,
कि नैया पार हो जाऐ।।



उमर जाती है रे प्राणी,

जतन करले ओ अभिमानी,
तजबीज कर कोई ऐसी,
कि नैया पार हो जाऐ।।

– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923

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Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

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