स्वर्ग से सूंदर लगे,
ये प्यारा चुरू धाम,
द्वार जो भी आते है,
सब कुछ पाते है,
बन जाते बिगड़े काम,
भक्तो के भगवन है जो,
बाबोसा है जिनका नाम,
नाम जो भी लेते है,
साथ उनके रहते है,
बाबोसा सुबहो शाम।।
तर्ज – फूलो सा चेहरा तेरा।
कलयुग के है ये देव निराले,
सच्चा वो चुरू का दरबार है,
मन की मुरादे होती है पूरी,
भक्तो का बाबोसा दातार है,
भक्त हजारो में,
वो खड़े कतारों में,
वो दर्श की मन मे लिये आस है,
होंगे जब दर्शन,
धन्य होगा जीवन,
भक्तो के दिल मे ये विस्वास है,
भक्तो के ये हनुमान है,
खुश होते जिनसे श्री राम,
द्वार जो भी आते है,
सब कुछ पाते है,
बन जाते बिगड़े काम।।
परिवार के संग आता है जो भी,
एकबार इनके दरबार में,
बाबोसा फिर खुशियो की बारिस,
कर देते है उनके परिवार में,
प्यार लुटाते है,
अपना बनाते है,
बाबोसा जैसा कोई देव नही,
चरणों मे जो आता,
वो इनका ही हो जाता,
दिलबर न ऐसा ओर कही है,
भक्तो के संग में रहे,
बाबोसा जन्मो जनम,
द्वार जो भी आते है,
सब कुछ पाते है,
बन जाते बिगड़े काम।।
स्वर्ग से सूंदर लगे,
ये प्यारा चुरू धाम,
द्वार जो भी आते है,
सब कुछ पाते है,
बन जाते बिगड़े काम,
भक्तो के भगवन है जो,
बाबोसा है जिनका नाम,
नाम जो भी लेते है,
साथ उनके रहते है,
बाबोसा सुबहो शाम।।
गायक – शेलेन्द्र मालवीया।
रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’
नागदा 9907023365