स्वार्थ की दुनिया को छोड़ के,
आया बाबोसा तेरे द्वार,
स्वार्थ की दुनियां को छोड़ के,
आया मैं तेरे द्वार,
सुनलो ये मेरी पुकार,
मैं तो गया हूं हार,
सुनलो बाबोसा सरकार,
करो विनती मेरी स्वीकार,
सुनलो ये मेरी पुकार।।
तर्ज – नफरत की दुनिया को।
हर खुशी हुई ओझल,
छाये गम के अंधरे,
जो कल तक थे अपने,
वो आज नही मेरे,
एक यही अरदास,
बनू में प्रभु चरणो का दास,
कर दो प्रभु उपकार,
सुनलो ये मेरी पुकार।।
अब छोड़कर तुमको,
कही और नही जाऊँ,
तेरी चोखट पे ‘दिलबर’,
सारी उम्र बिताऊँ,
कहे देव ये बारम्बार,
छुटे ना तेरा ये दरबार,
बाबोसा सरकार।।
स्वार्थ की दुनिया को छोड़ के,
आया बाबोसा तेरे द्वार,
स्वार्थ की दुनियां को छोड़ के,
आया मैं तेरे द्वार,
सुनलो ये मेरी पुकार,
मैं तो गया हूं हार,
सुनलो बाबोसा सरकार,
करो विनती मेरी स्वीकार,
सुनलो ये मेरी पुकार।।
लेखक / प्रेषक – दिलीप सिंह सिसोदिया दिलबर।
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