शिव शंकर भोलेनाथ,
डमरू लिये हाथ,
सदाशिव पार्वती प्यारा,
मस्तक पर पड़ती,
सुखानंद में गंगा की धारा,
मस्तक पर पड़ती,
सुखानंद में गंगा की धारा।।
सुखदेव मुनि इस तपोभूमि पर,
ध्यान लगाया करते,
वो निशिदीन ही आकाश मार्ग से,
गंगा जाया करते,
खुश होकर गंगे मात,
कहे ये बात,
वहां में लूंगी अवतारा,
मस्तक पर पड़ती,
सुखानंद में गंगा की धारा।।
सुखदेव जी बोले ऐ मैय्या,
कैसे पता चलेगा वहां पे,
मां बोली तेरे डोर कमंडल,
छोड़ चला जा यहां पे,
मां गंगा आई साक्षात,
मिले वहीं साक्ष,
बात का हुआ परचारा,
मस्तक पर पड़ती,
सुखानंद में गंगा की धारा।।
तब से ही लाखों नर नारी,
गंगा स्नान को आते,
सुखदेव मुनि और शिव शंकर के,
दर्शन कर सुख पाते,
चाहे कर लो चारों धाम,
ना करो ये धाम,
पुण्य मिलता नहीं है सारा,
मस्तक पर पड़ती,
सुखानंद में गंगा की धारा।।
पर्वत की सुंदरता और झर-झर,
झरने की छवि न्यारी,
शिव भोले के दर्शन करके,
मिटती चिंता सारी,
कहता है प्यारेलाल,
हो गए निहाल,
अंत में शिव ही आधारा,
मस्तक पर पड़ती,
सुखानंद में गंगा की धारा।।
शिव शंकर भोलेनाथ,
डमरू लिये हाथ,
सदाशिव पार्वती प्यारा,
मस्तक पर पड़ती,
सुखानंद में गंगा की धारा,
मस्तक पर पड़ती,
सुखानंद में गंगा की धारा।।
गायक – मधुसूदन नागदा।
7828351028
लेखक – प्यारेलाल जी नागदा।