श्री राम दया के सागर है,
है रघुनन्दन सब दुख भंजन,
रघुकुल कमल उजागर है,
श्रीं राम दया के सागर है।।
“पत्थर की शिला गौतम नारी बन गई श्राप की मारी थी,
उसे राग भई बैराग भई फिर भी आस तुम्हारी थी,
छुआ चरण से शिला को रघुवरने तत्काल,
पग लगते ही बन गई वो गौतम नारी निहाल,”
क्या पांव मैं तेरे जादु भरा है,
पत्थर भी नर बन जाते है,
श्रीं राम दया के सागर है।।
“फिर एक वन में गिध्द पडा राम ही राम पुकारता है,
कटे हुए पंखो की पीडा से अपने प्राणो को हारता है,
सियाराम कहने लगे वो ही हुं मैं राम,
उठो गिध्दपति देखलो ये राम तुम्हे करे प्रणाम,
हट जाओ मुझे मरने दो माता का दिया राममंन्त्र का,
आराधन मुझको करने दो,”
खग जग का तु भेद ना जाने,
समझे सबको बराबर है,
श्रीं राम दया के सागर है।।
“गिध्द राज के दुखो का करते हुए बखान,
जा पँहुचे सबरी के घर कृपा सिधु भगवान,
सुन्दर पत्तो के आसन पर अपने प्रभु को बैठाती है,
मेहमानी के खातिर कुछ डलिया बैरों की लाती है,
भिलनी का सच्चा भाव देख राघवजी भोग लगाते है,
उन बार बार झुट् बैरो का रूचि रूचि कर भोग लगाते,
ले लो लक्षमण तुम भी ले लो ये बैर सुधा से बढकर है,
सीता का दिया भोजन भी होता नहीं इतना रूचिकर है,
ये सुनकर भिलनी के हुआ आन्नद,
देवता भी बोलते जयति सच्चिदानन्द,”
गद गद होकर भिलनी बोली,
तुम ठाकुर हम चाकर है,
श्रीं राम दया के सागर है।।
श्री राम दया के सागर है,
है रघुनन्दन सब दुख भंजन,
रघुकुल कमल उजागर है,
श्रीं राम दया के सागर है।।
गायक – धर्मेंद्र गावड़ी।
प्रेषक – धरम चन्द नामा।
9887223297
Bahut achcha tha