सतरी संगत सुख धारा,
दोहा – सतसंग यु समझा रही,
के ले सतगुरु री ओट,
सतगुरु बिना मिले नही,
बीरा थारा मन री खोट।
थारा मन री खोट,
मुर्ख क्यु जनम गमावे,
अरे सतसंग यु समझा रही,
के ले सतगुरु री ओट।
संगत किजे संत री,
ओर क्या नुगरा से काम,
नुगरा लेजावे नारगी तो,
संत मिलावे राम।
संत मिलावे राम,
नारगी बाहर काडे,
दे अपना उपदेश,
ग्यान री जाजा चाढे।
मंगलगिरी यु कहत है,
ओर अमर बसावो धाम,
संगत किजे संत री,
तो क्या नुगरा से काम।।
संतो भई आ सतरी संगत सुख धारा,
अरे जो कोई आय मिले सतसंग में,
ओ जो कोई आय मिले सतसंग में,
होई जावे भवजल पारा ओ संतो भई,
सतरी संगत सुख धारा।।
अरे लोहा कटोरी सोन सोवे गनरी,
पनीया करनी कोडारा,
अरे लोहा कटोरी सोन सोवे गनरी,
पनीया करनी कोडारा,
अरे पारस रे अंग लोहा लपेटीया,
अरे पारस रे अंग लोहा लपेटीया,
अरे हो गया कंचन सारा रे संतो भई,
सतरी संगत सुख धारा।।
अरे किसत पेठी अरे भरे भूमि पर,
कर्म की ढाका भारा,
अरे किसत पेठी अरे भरे भूमि पर,
कर्म की ढाका भारा,
अरे पल भर संगत करे भंवरा री,
पल भर संगत करे भंवरा री,
अरे भंवर करे गुंजारा रे संतो भई,
सतरी संगत सुख धारा।।
अरे आसोज महिनो अरे पका अजवाला,
बरसे अमृत धारा,
अरे आसोज महिनो अरे पका अजवाला,
बरसे अमृत धारा,
सिप मुख मोती सर्प मुख जहर है,
सिप मुख मोती सर्प मुख जहर है,
अरे वर्तन जेडा रे ओ वारा रे संतो भई,
सतरी संगत सुख धारा।।
कर सतसंग माने ए हरी रंग लागो,
मिट गया घोर अन्धेरा,
अरे कर सतसंग माने हरी रंग लागो,
मिट गया घोर अन्धेरा,
अरे केवे आशा भारतीजी,
संगत नित गंग है,
केेवे आशा भारतीजी,
संगत नित गंग है,
अरे ऊंच नीच एक सारा रे संतो भई,
सतरी संगत सुख धारा,
सतरी संगत सुख धारा।।
गायक – संत कन्हैयालाल जी।
प्रेषक – मनीष सीरवी
9640557818