सत री संगत के माही मुर्ख नही जावे रे भजन लिरिक्स

सत री संगत के माही,
मुर्ख नही जावे रे।

दोहा – एक घडी आधी घडी,
आधी में पुनि आध,
तुलसी संगत साध की,
कटे कोटि अपराध।



सत री संगत के माही,

मुर्ख नही जावे रे,
हीरो सो जन्म गंवा,
फेर पछतावे रे।।



जे आवे इण माही,

तो पार हो जावे रे,
आ संता री नाव,
बैठ तीर जावे रे।।



या सतसंग गंगा,

ज्यो कोई नर न्हावे रे,
मन श्रुति काया,
निर्मल हो जावे रे।।



मानसरोवर सतसंग,

ज्यो कोई नर आवे रे,
चुग-चुग मोती खा,
हंस हरसावे रे।।



नीज रा प्याला पी,

अमर हो जावे रे,
नशो रहे दिन रात,
काल नही खावे रे।।



सहीराम गुरू पा,

सतलोक दर्शावे रे,
जावे कबीरो उण धाम,
फेर नही आवे रे।।



सत री संगत क माही,

मुर्ख नही जावे रे,
हीरो सो जन्म गंवा,
फेर पछतावे रे।।

गायक / प्रेषक – साँवरिया निवाई।
7014827014


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Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

2 COMMENTS

    • आपका कोटि कोटि धन्‍यवाद मुकेश जी

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