संदेसा आ गया यम का,
चलन की कर तैयारी है।।
बाल सिर के हुए धोले,
सफेदी आँख पर छाई,
कान से हो गया बेहरा,
दाँत हिलना भी जारी है,
संदेसा आ गया जम का,
चलन की कर तैयारी है।।
कमर सब हो गई कुबड़ी,
चले लकड़ी सहारे से,
गई सब देह की ताकत,
लगी तन में बीमारी है,
संदेसा आ गया जम का,
चलन की कर तैयारी है।।
छुटी सब प्रीत तिरिया की,
पुत्र सब हो गये न्यारे,
बने सब मतलब के साथी,
झूठ लोकन की यारी है,
संदेसा आ गया जम का,
चलन की कर तैयारी है।।
करो जगदीश का सुमिरण,
भरोसा राख कर मन में,
वो ब्रह्मानन्द है तेरा,
एक ही सहायकारी है,
संदेसा आ गया जम का,
चलन की कर तैयारी है।।
संदेसा आ गया यम का,
चलन की कर तैयारी है।।
स्वर – प्रकाश गाँधी।