सालासर में जिसका,
आना जाना हो गया,
वो ही मेरी बाबा का,
दीवाना हो गया,
वो ही मेरी बाबा का,
दीवाना हो गया।।
तर्ज – एक परदेसी मेरा दिल।
जा के दरबार में,
जो शीश झुकाते हैं,
बालाजी दयालु उन्हें,
गले से लगाते हैं,
जिसका मेरे बाबा से,
याराना हो गया,
वो ही मेरी बाबा का,
दीवाना हो गया,
वो ही मेरी बाबा का,
दीवाना हो गया।।
प्यार का खजाना,
बालाजी का भरपूर है,
प्रेम को लुटाने में,
ये बड़े मशहूर है,
जो भी इनसे जाना,
पहचाना हो गया,
वो ही मेरी बाबा का,
दीवाना हो गया,
वो ही मेरी बाबा का,
दीवाना हो गया।।
बाबा के दीवाने की तो,
बात निराली है,
बाबा की कृपा से,
मोहन मुरली की दीवानी है,
जिनका उनके चरणों में,
ठिकाना हो गया,
वो ही मेरी बाबा का,
दीवाना हो गया,
वो ही मेरी बाबा का,
दीवाना हो गया।।
सालासर में जिसका,
आना जाना हो गया,
वो ही मेरी बाबा का,
दीवाना हो गया,
वो ही मेरी बाबा का,
दीवाना हो गया।।
स्वर – जया किशोरी जी।
प्रेषक – माही गगनेजा
9897083240