सजा दो मन को मधुबन सा,
मेरे गणराज आये है,
लगे हर गुल भी गुलशन सा,
मेरे गणराज आये है।।
सुदी भादों चतुर्थी को,
झुलावे गौरा गणपति को,
चमन महकेगा चन्दन सा,
मेरे गणराज आये है।।
है माता गौरा कल्याणी,
पिता है भोले वरदानी,
ललन है अलख निरंजन सा,
मेरे गणराज आये है।।
है दाता रिद्धि सिद्धि के,
है दाता ज्ञान बुद्धि के,
‘पदम्’ सेवक है निर्गुण सा,
मेरे गणराज आये है।।
सजा दो मन को मधुबन सा,
मेरे गणराज आये है,
लगे हर गुल भी गुलशन सा,
मेरे गणराज आये है।।
लेखक / प्रेषक – डालचन्द कुशवाह”पदम्”
भोपाल। 9827624524
गायक – जगदीश विश्वकर्मा।