रे मन प्रति स्वांस पुकार यही,
जय राम हरे घनश्याम हरे,
तन नौका की पतवार यही,
जय राम हरे घनश्याम हरे।।
देखे – सीताराम कहो राधेश्याम कहो।
जग में व्यापक आधार यही,
जग में लेता अवतार वही,
है निराकार साकार यही,
जय राम हरे घनश्याम हरे।।
ध्रुव को ध्रुव-पद दातार यही,
प्रह्लाद गले का हार यही,
नारद वीणा का तार यही,
जय राम हरे घनश्याम हरे।।
सब सुकृतो का आगार यही,
गंगा यमुना की धार यही,
श्री रामेश्वर हरिद्वार यही,
जय राम हरे घनश्याम हरे।।
सज्जन का साहूकार यही,
प्रेमीजन का व्यापार यही,
सुख ‘बिंदु’ सुधा का सार यही,
जय राम हरे घनश्याम हरे।।
रे मन प्रति स्वांस पुकार यही,
जय राम हरे घनश्याम हरे,
तन नौका की पतवार यही,
जय राम हरे घनश्याम हरे।।
स्वर – रमेश दाधीच।
रचना – श्री बिंदु जी महाराज।