प्रभू तेरे अन्दर कही पे छुपा है,
वो सब देखता है,
वो सब देखता है,
न हो यकीँ जिसको आकर के देखे,
जिसे देखना है,
जिसे देखना है।।
तर्ज – तुम्ही मेरे मन्दिर।
नही कोई सँशय,
न कोई भरम है,
चर और अचर सब मे,
व्यापक वो ब्रह्म है,
कहना यही सब,
सँत मतोँ का,
यही वैद का है,
यही वैद का है।।
दुनिया से चाहे तू,
नज़रे चुराए,
मगर ईश्वर से,
नही बच पाए,
कर्मो पे तेरे सब,
उसकी नज़र है,
वो सब देखता है,
वो सब देखता है।।
बाँध के मुट्ठी,
भरोसा दिलाया,
करूँगा भजन,
वादा करके तू आया,
मौजेँ उढ़ाने को प्रभू,
जग मे हमको,
नही भेजता है,
नही भेजता है।।
प्रभू तेरे अन्दर कही पे छुपा है,
वो सब देखता है,
वो सब देखता है,
न हो यकीँ जिसको आकर के देखे,
जिसे देखना है,
जिसे देखना है।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
शिवनारायण वर्मा,
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