पावागढ़ सु उत्तरी कालका,
संग भेरू ने लाइ रे,
आगे आगे कालो खेले,
पाछे भेरू गोरो हे ओ जी।।
ऐ हे खड़क खांडो खप्पर हाते,
हुई विकराल काली हे,
योगी भूत पिचासन नाचे,
हे तीन लोक की माई हे ओ जी,
पांवागढ़ सु उत्तरी कालका,
संग भेरू ने लाइ रे।।
ऐ हे तीन लोक और चौदह भवन में,
माता थारो राज हे,
देवी देवता सरणे आया,
शंकर शीश नमाया हे ओ जी,
पांवागढ़ सु उत्तरी कालका,
संग भेरू ने लाइ रे।।
ऐ हे ढोल नंगाड़ा नोपत बाज्या,
तीनो देव थारे नाच्या हे,
भगता रे बेले आवो ऐ कालका,
अब देरी ना लगावो हे ओ जी,
पांवागढ़ सु उत्तरी कालका,
संग भेरू ने लाइ रे।।
ऐ हे धरम भगत थारी महिमा गावे,
चरना शीश नमावे हे,
जो कोई चरना आवे मात रे,
जनम सफल हो जावे हे ओ जी,
पांवागढ़ सु उत्तरी कालका,
संग भेरू ने लाइ रे।।
पावागढ़ सु उत्तरी कालका,
संग भेरू ने लाइ रे,
आगे आगे कालो खेले,
पाछे भेरू गोरो हे ओ जी।।
गायक और लेखक – धर्मेंद्र तंवर उदयपुर।
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