मेरे सांवरे मुझको दे दो सहारा,
दोहा – ये सारे खेल तुम्हारे है,
जग कहता खेल नसीबो का,
मैं तुझसे दौलत क्या मांगू,
मैंने सुना तू यार गरीबों का।
मेरे सांवरे मुझको दे दो सहारा,
हो मायूस मैने भी तुझको पुकारा।।
तर्ज – लगी आज सावन की फिर।
मैं करता हूँ कोशिश ना कोई भी कुढ़े,
मेरी बातों से दिल किसी का ना टूटे,
मैं अपनो की खातिर ये जीवन लुटा दूँ,
मगर मुझे अपनो ने कान्हा बिसारा,
मेरे साँवरे मुझको दे दो सहारा।।
मैं कहता नही की बुरा है जमाना,
मगर मैं हूँ पागल ये कितना सयाना,
जोड़े यहाँ सबने है मतलब के रिश्ते,
नही स्वार्थ के बिन यहाँ भाईचारा,
मेरे साँवरे मुझको दे दो सहारा।।
मैं किसको पुकारूं मैं किसको बुलाऊँ,
बता दे ये दुखड़ा मैं किसको सुनाऊँ,
फसा हूँ भंवर में अब मैं तो कन्हैया
दिखाए यहाँ कौन तुम बिन किनारा,
मेरे साँवरे मुझको दे दो सहारा।।
मेरे सांवरे मुझको दे दो सहारा,
हो मायूस मैने भी तुझको पुकारा।।
स्वर – अविनाश कर्ण।