मेरे पिता मेरे भगवान,
मेरी दुनियाँ कर वीरान,
कहाँ तुम चले गए,
कहाँ तुम चले गए,
मेरे जीवन की पहचान,
मेरी दुनियाँ कर वीरान,
कहाँ तुम चले गए,
कहाँ तुम चले गए।।
मैंने भाव समर्पण का,
गुण आपसे सीखा है,
सिखलाया आपने ही,
जीने का सलीका है,
अभी और सिखाना था,
ऐसे तो ना जाना था,
कहाँ तुम चले गए,
मेरें पिता मेरें भगवान,
मेरी दुनियां कर वीरान
कहाँ तुम चले गए।।
क्यों आपके होने का,
अहसास अभी भी है,
आओगे लौट के तुम,
विश्वास अभी भी है,
मेरी दुनिया के सरताज,
आ जाओ लौट के आज,
कहाँ तुम चले गए,
मेरें पिता मेरें भगवान,
मेरी दुनियां कर वीरान
कहाँ तुम चले गए।।
ये आपके ही कर्म थे,
जो कुछ बन पाया हूँ,
मैं जैसा जो भी हूँ,
बस आपकी छाया हूँ,
मुझे इसका है अभिमान,
मुझे मिला आपका नाम,
कहाँ तुम चले गए,
मेरें पिता मेरें भगवान,
मेरी दुनियां कर वीरान
कहाँ तुम चले गए।।
‘रजनी’ कुछ चाह नहीं,
बस इतना श्याम मिले,
जब भी लूँ जन्म कहीं,
मुझे आपका नाम मिले,
‘सोनू’ करता फरियाद,
बस छोड़के अपनी याद,
कहाँ तुम चले गए,
मेरें पिता मेरें भगवान,
मेरी दुनियां कर वीरान
कहाँ तुम चले गए।।
मेरे पिता मेरे भगवान,
मेरी दुनियाँ कर वीरान,
कहाँ तुम चले गए,
कहाँ तुम चले गए,
मेरे जीवन की पहचान,
मेरी दुनियाँ कर वीरान,
कहाँ तुम चले गए,
कहाँ तुम चले गए।।
स्वर – रजनी जी राजस्थानी।
प्रेषक – सत्यनारायण जी विजयवर्गीय।