मेरे बालाजी के द्वार,
जो भी सच्चे मन से मांगे,
उसको देते है बाला,
ये है दिलदार,
क्यों हो गुम सुम,
कहो इनसे जरा तुम,
रे भक्तो क्यों हो गुम सुम,
कहो इनसे जरा तुम।।
तर्ज – फकीरा चल चला चल।
इनसे जिसने जो भी माँगा,
जो चाहा वो पाया है,
कौन है जिसको मेरे प्रभु ने,
खाली ही लौटाया है,
ये दयालु अपार,
दीन दुखियों का कर देते है,
पल में बेड़ा पार,
ये है दिलदार,
क्यों हो गुम सुम,
कहो इनसे जरा तुम,
रे भक्तो क्यों हो गुम सुम,
कहो इनसे जरा तुम।।
जो भी इनके दर पे आया,
उसके सारे काम हुए,
खुशियाँ मिल गई,
दोनों जहां की,
पल में ही आराम हुए,
आए जो एक बार,
फिर वो मांगे या ना मांगे,
उसको देते है बाबा,
ये है दिलदार,
क्यों हो गुम सुम,
कहो इनसे जरा तुम,
रे भक्तो क्यों हो गुम सुम,
कहो इनसे जरा तुम।।
भक्तो पर ये प्यार लुटाए,
सबके संकट हर लेते,
जो भी आया इन चरणों में,
उसको अपना कर लेते,
देते उसको उबार,
बेखबर मेरे बाला का ये,
सच्चा है दरबार,
ये है दिलदार,
क्यों हो गुम सुम,
कहो इनसे जरा तुम,
रे भक्तो क्यों हो गुम सुम,
कहो इनसे जरा तुम।।
मेरे बालाजी के द्वार,
जो भी सच्चे मन से मांगे,
उसको देते है बाला,
ये है दिलदार,
क्यों हो गुम सुम,
कहो इनसे जरा तुम,
रे भक्तो क्यों हो गुम सुम,
कहो इनसे जरा तुम।।
स्वर – दिनेश भट्ट जी।