मेरा बजरंगी हनुमान,
बड़ा ही अलबेला है,
बड़ा अलबेला है,
बड़ा ही अलबेला है,
चाहे कितना बड़ा हो काम,
वो करता अकेला है,
मेरा बजरँगी हनुमान,
बड़ा ही अलबेला है।।
भीर पड़ी जब राम पे भारी,
रावण ने हर ली सिया महतारी,
लाए खोज सिया की,
राम का मिटाया झमेला है,
मेरा बजरँगी हनुमान,
बड़ा ही अलबेला है।।
अशोक वाटिका में वो ललकारा,
रावण के सैनिकों को भी मारा,
किसी से भी एक भी वार,
गया ना झेला है,
मेरा बजरँगी हनुमान,
बड़ा ही अलबेला है।।
लक्ष्मण को जब मूर्छा आई,
विकल हो गए तब रघुराई,
लाए संजीवनी का पर्वत,
उठा के अकेला है,
मेरा बजरँगी हनुमान,
बड़ा ही अलबेला है।।
कहे ‘श्याम’ राम का है वह दीवाना,
सिया जी ने इसे पुत्र ही माना,
सियाराम बसें जिस मन में,
वो भी नवेला है,
मेरा बजरँगी हनुमान,
बड़ा ही अलबेला है।।
मेरा बजरंगी हनुमान,
बड़ा ही अलबेला है,
बड़ा अलबेला है,
बड़ा ही अलबेला है,
चाहे कितना बड़ा हो काम,
वो करता अकेला है,
मेरा बजरँगी हनुमान,
बड़ा ही अलबेला है।।
रचना / स्वर – घनश्याम मिढ़ा।
भिवानी – 9034121523