मत पीवे म्हारा फुलडा दारूडी,
क्यों धन कि धुल उडावै रे।।
कर मजूरी पैसे कमावे,
शाम पडिया ठेका पर जावे,
यो तो पुरी बोतल भरावे रै,
मत पिवै म्हारा फुलड़ा दारूडी,
क्यों धन कि धुल उडावै रे।।
दारू पीकर पाडै हाको,
कवै भतिजो पागल म्हारो काको,
योतो बेरो क्यू बरडावे रै,
मत पिवै म्हारा फुलड़ा दारूडी,
क्यों धन कि धुल उडावै रे।।
अल्या गल्या मे धक्का खावे,
पडिया धरती पर कुता धार लावै,
म्हारा प्रेमी और पिलावे रै,
मत पिवै म्हारा फुलड़ा दारूडी,
क्यों धन कि धुल उडावै रे।।
नसो उतरे जद घर ने आवै,
घर त्रिया के धक्का लगावै,
क्यु थारी इज्जत ने गुमावै रै,
मत पिवै म्हारा फुलड़ा दारूडी,
क्यों धन कि धुल उडावै रे।।
दारू पिवे जो घणा दुख पावै,
सायरमेघ यू साची गावै,
तु जिवतो क्यू नी मर जावै रै,
मत पिवै म्हारा फुलड़ा दारूडी,
क्यों धन कि धुल उडावै रे।।
मत पीवे म्हारा फुलडा दारूडी,
क्यों धन कि धुल उडावै रे।।
गायक – मनोहर परसोया रैदास।
कविता साउँण्ड किशनगढ।