मन तू सतसंग करले भाई,
दोहा – एक घड़ी आधी घड़ी,
आधी मे पुनिआध,
तुलसी सतसंग साध कि,
भाई कटे कोटि अपराध।
मन तू सतसंग करले भाई,
सतसंग बीना सुख नही पावै,
चाहै फिरो जग माई।।
सतसंग पारस है जग माई,
कंचन करै सदाई,
मन पलट हरि मे लागो,
सारो दुःख मिट जाई।।
सतसंग है सत्य कि करणी,
भव से पार उतराई,
जो कोई आई बेटे सतसंग में,
प्रभु के दर्शन हो जाई।।
सतसंग पाई सारा सुधरिया,
कबीरा सज्जन कसाई,
पल मे मोक्ष करे जीव कि,
यामे शिंष्य नाय।।
देवा राम मिल्या गूरू पुरा,
सतसंग लगन लगाई,
गणपत राम करो नीत सतसंग,
जन्म सफल हो जाई।।
मन तू सतसंग करलें भाई,
सतसंग बीना सुख नही पावै,
चाहै फिरो जग माई।।
गायक / प्रेषक – मनोहर परसोया।
Very nice ?
Super