मन पकड़ मालूम कर जूना जोगी जद रणुकार जगाया

मन पकड़ मालूम कर जूना जोगी,
जद रणुकार जगाया।।

दोहा – मन तुं मेरी मान ले,
बार बार कहूँ तोय,
राम नाम सिमरण बिना,
तेरा निस्तारा नही होय।
निस्तारा नही होय गुंदड़ा खातो जावे,
भवसागर रे माय गुरु बिना कोण बचावे।
प्रताप राम कथ कहे लीजे घट में जोय,
मन तू मेरी मान ले बार बार कहूँ तोय।



जव कण जतरा आप अपोम्बर,

एवो गुरु देवल बणाया,
पिछम देश ने हीरा-हीरा भलके,
वहाँ जाए केवल ठहराया,
मन पकड़ मालुम कर जूना जोगी,
जद रणुकार जगाया।।



हाथ पांव ने मस्तक माथो,

उण गुरु मंदिर चुणाया,
इण रे मंदिर रे दोय दोय पांवा,
सत वचनों से ठहराया,
मन पकड़ मालुम कर जूना जोगी,
जद रणुकार जगाया।।



सूरत पकड़ ने गुरु गम होईजो,

आगे लिखिया पाया,
आगम देव सकल घट भीतर,
सब घट रया रे समाया,
मन पकड़ मालुम कर जूना जोगी,
जद रणुकार जगाया।।



सहजे सहजे सिमरण करिया,

एको ही एक धणी ने ध्याया,
दयानाथ शरणे स्वामी बोलिया प्रागनाथ,
मीठा मीठा हरि जस गाया,
मन पकड़ मालुम कर जूना जोगी,
जद रणुकार जगाया।।



मन पकड़ मालूम कर जूना जोगी,
जद रणुकार जगाया।।

गायक – खेताराम पूनड़।
प्रेषक – दिनेश पांचाल बुड़ीवाड़ा।
8003827398


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Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

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