माँ अंबे दे दो चरण कमल की धूल,
मेरी भूल जाओ हर भूल,
मां अंबे दे दो चरण कमल की धूल।।
मैं निर्बल हूँ बल दो माता,
प्यासे मन को जल दो माता,
इस तन का कुछ फल दो माता,
कही हो ना जाए निर्मूल,
मां अंबे दे दो चरण कमल की धूल,
मेरी भूल जाओ हर भूल,
मां अंबे दे दो चरण कमल की धूल।।
जहाँ जले माँ ज्योत तुम्हारी,
रैन रहे न वहां अंधियारी,
सुखमय जीवन की फुलवारी,
कही हो ना जाए बबूल,
मां अंबे दे दो चरण कमल की धूल,
मेरी भूल जाओ हर भूल,
मां अंबे दे दो चरण कमल की धूल।।
माँ अंबे दे दो चरण कमल की धूल,
मेरी भूल जाओ हर भूल,
मां अंबे दे दो चरण कमल की धूल।।
लेखन – हरी सिंह भैया।
सीताराम सत्संग ग्रुप।
7566973672