खाटू जाने को जब मेरा,
मन बावरा ललचाता,
श्याम प्रभु को याद करके,
हिवड़ा मेरा भर आता,
खाटु जाने को जब मेरा,
मन बावरा ललचाता।।
होता है वो किस्मत वाला,
हर ग्यारस खाटू जाता,
लगता मैं नहीं तेरे काबिल,
दर्श तेरा ना कर पाता,
शीश के दानी, क्यूँ ना मुझ पर,
किरपा अपनी बरसाता,
खाटु जाने को जब मेरा,
मन बावरा ललचाता।।
क्या गलती मुझसे हुई जो,
इतना मुझको तड़पाता,
सुना है तू तो देव दयालु,
किस्मत लेख बदल पाता,
अब तो मुझको, दर पे बुलाले,
दर्द सहा नहीं अब जाता,
खाटु जाने को जब मेरा,
मन बावरा ललचाता।।
तू ही बता दे कर्म वो जिनसे,
दर्श तेरा है हो पाता,
दर्शन दोगे कष्ट हरोगे,
भाव यहीं दिल में आता,
शरण में ले लो अब ‘अंकुर’ को,
चरणों मे है शीश झुकाता,
खाटु जाने को जब मेरा,
मन बावरा ललचाता।।
खाटू जाने को जब मेरा,
मन बावरा ललचाता,
श्याम प्रभु को याद करके,
हिवड़ा मेरा भर आता,
खाटु जाने को जब मेरा,
मन बावरा ललचाता।।
लेखक / प्रेषक – अंकुर अग्रवाल
9837363800