खातिर करले नई गुजरिया,
रसिया ठाड़ौ तेरे द्वार।।
ये रसिया तेरे नित न आवे,
प्रेम होय जब दर्शन पावे,
अधरामृत को भोग लगावे,
कर मेहमानी अब मत चूके,
समय ना बारम्बार,
खातिर कर लै नई गुजरिया,
रसिया ठाड़ौ तेरे द्वार।।
हिरदे कौं चौका कर हेली,
नेह कौ चन्दन चरचि नवेली,
दीक्षा लै बनि जइयो चेली,
पुतरिन पलंग बिछाय पलक की,
करलै बन्द किबार,
खातिर कर लै नई गुजरिया,
रसिया ठाड़ौ तेरे द्वार।।
जो कछु रसिया कहै सौ करियो,
सास-ससुर को डर मत करियो,
सोलह कर बत्तीस पहरियो,
दै दै दान सूम की सम्पति,
जीवन है दिन चार,
खातिर कर लै नई गुजरिया,
रसिया ठाड़ौ तेरे द्वार।।
सबसे तोड़ नेह की डोरी,
जमुना पार उतर चल गोरी,
निधरक खेलौ करियो होरी,
श्याम रंग चढ़ि जाय जा दिना,
है जाय बेड़ा पार,
खातिर कर लै नई गुजरिया,
रसिया ठाड़ौ तेरे द्वार।।
खातिर करले नई गुजरिया,
रसिया ठाड़ौ तेरे द्वार।।
स्वर – चन्द्र रसिक जी महाराज।
प्रेषक – चेतन शर्मा।
8950185660