कर्म है बुरे बुरे और तुम,
स्वर्ग जाने की बात करते हो,
बोये पेड़ बबूल के और तुम,
आम खाने की बात करते हो।।
तर्ज – आँख है भरी भरी।
जलाया घर किसी का जो,
जलेगा घर तुम्हारा भी,
दु:खाया दिल किसी का जो,
दुखेगा दिल तुम्हारा भी,
देकर दुःख औरों को और तुम,
सुख पाने की बात करते हो,
कर्म हैं बुरे बुरे और तुम,
स्वर्ग जाने की बात करते हो।।
जो औरों के लिये सोचे,
बुरा ख़ुद का बुरा होगा,
जो औरों को गिरायेगा,
वो खुद पहले गिरा होगा,
मन में छल भरा-भरा और तुम,
दर्श पाने की बात करते हो,
कर्म हैं बुरे बुरे और तुम,
स्वर्ग जाने की बात करते हो।।
बनाकर वेश साधु का,
कमंडल हाथ में रखकर,
‘सजन’ हरि गुण नहीं गाया,
कभी विषयो में यूं फसकर,
वासना भरी भरी और तुम,
मुक्ति पाने की बात करते हो,
कर्म हैं बुरे बुरे और तुम,
स्वर्ग जाने की बात करते हो।।
करम की है गति न्यारी,
करम परिणाम है न्यारा,
करम न छोड़ता पीछा,
करम से हर कोई हारा,
कर्म फल भोगे बिना और तुम,
तैर जाने की बात करते हो,
कर्म हैं बुरे बुरे और तुम,
स्वर्ग जाने की बात करते हो।।
कर्म है बुरे बुरे और तुम,
स्वर्ग जाने की बात करते हो,
बोये पेड़ बबूल के और तुम,
आम खाने की बात करते हो।।
लेखक / प्रेषक – डॉ एस. एस. सोलंकी।
9111337188