कई मर्तबा हम,
मर चुके है ओ मन,
मगर अब तो,
आओ गुरू की शरण,
मगर अब तो आओ,
गुरू की शरण,क्यो कि,
जीते हुए मरने की,
कला सीखले गुरू से,
हरि नाम को भजने की,
कला सीख ले गुरू से।।
तर्ज – बीते हुए लम्हो की कसक।
सँसार मे हर पाँव,
सँभल करके तू रखना,
काँटो से भरी राहेँ,
सँभल करके तू चलना,
दुनिया मे तू रहने की,
कला सीख ले गुरू से,
जीते हुए मरने की,
कला सीखले गुरू से,
हरि नाम को भजने की,
कला सीख ले गुरू से।।
एक बार तो आजा,
अरे प्राणी गुरू दर पे,
करके तो जरा देख,
भरोसा गुरुवर पे,
समझाते इशारो मे,
कला सीख ले गुरु से,
जीते हुए मरने की,
कला सीखले गुरू से,
हरि नाम को भजने की,
कला सीख ले गुरू से।।
आएगा गुरू दर पर,
तो पाएगा तू युक्ती,
उस पर तू अमल करले,
तो पा जाएगा मुक्ती,
मुक्ती को तू पाने की,
कला सीख ले गुरू से,
जीते हुए मरने की,
कला सीखले गुरू से,
हरि नाम को भजने की,
कला सीख ले गुरू से।।
कई मर्तबा हम,
मर चुके है ओ मन,
मगर अब तो,
आओ गुरू की शरण,
मगर अब तो आओ,
गुरू की शरण,क्यो कि,
जीते हुए मरने की,
कला सीखले गुरू से,
हरि नाम को भजने की,
कला सीख ले गुरू से।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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