कब उड़ जाए पँछी नही है इसका कोई ठिकाना विविध भजन

कब उड़ जाए पँछी,
नही है इसका कोई ठिकाना,
कब उड़ जाए पंछी नही है,
इसका कोई ठिकाना।।

तर्ज – चल उड़ जा रे पँछी।



कँकर पत्थर बीन के तूने,

सुन्दर महल बनाया,
लेकिन तेरा बँगला प्राणी,
तेरे काम न आया,
ये जीवन दो दिन का तेरा,
चलती फिरती माया,
छोड़ घोसला इक दिन बँदे,
पँछी को उड़ जाना,
कब उड़ जाए पंछी नही है,
इसका कोई ठिकाना।।



यह जीवन है घर भाड़े का,

इस पर न इतराना,
जब तक देता रहे किराया,
तब तक का आशियाना,
मालिक बन कर इस पर प्राणी,
हक न अपना जताना,
छोड़के घर को इक दिन बँदे,
तुझको पड़ेगा जाना,
कब उड़ जाए पंछी नही है,
इसका कोई ठिकाना।।



जग मे दिन और रात कमाई,

तू ने शोहरत दौलत,
लेकिन प्रभू के भजन की तूझको,
मिल न पाई फुरसत,
फिर न मिलेगी तुझको बँदे,
आज मिली जो मोहल्लत,
अँत समय इक दिन तुझे प्राणी,
बहुत पड़े पछिताना,
कब उड़ जाए पंछी नही है,
इसका कोई ठिकाना।।



कब उड़ जाए पँछी,

नही है इसका कोई ठिकाना,
कब उड़ जाए पंछी नही है,
इसका कोई ठिकाना।।

– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923

वीडियो उपलब्ध नहीं।


 

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Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

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