जो विधि कर्म में लिखा विधाता,
मिटाने वाला कोई नहीं,
वक्त पड़े पर गजभर कपड़ा,
देने वाला कोई नहीं,
वक्त पड़े पर गजभर कपड़ा,
देने वाला कोई नहीं।।
वक्त पड़ा राजा हरीशचंद्र पे,
काशी जाय बिके भाई,
रोहिततास को डसयो सर्प ने,
रोती थी उसकी माई,
उसी समय रोहित को देखो,
बचाने वाला कोई नहीं,
वक्त पड़े पर गजभर कपड़ा,
देने वाला कोई नहीं।।
वक्त पड़ा देखो रामचंद्र पे,
वन को गए दोनो भाई,
राम गए और लखन गए थे,
साथ गई सीता माई,
वन में हरण हुआ सीता का,
बचाने वाला कोई नहीं,
वक्त पड़े पर गजभर कपड़ा,
देने वाला कोई नहीं।।
वक्त पड़ा अंधी अंधों पे,
वन में सरवण मरण हुआ,
सुन करके सुत का मरना फिर,
उन दोनों का मरण हुआ,
उसी श्राप से दशरथ मर गए,
जलाने वाला कोई नहीं,
वक्त पड़े पर गजभर कपड़ा,
देने वाला कोई नहीं।।
जो विधि कर्म में लिखा विधाता,
मिटाने वाला कोई नहीं,
वक्त पड़े पर गजभर कपड़ा,
देने वाला कोई नहीं,
वक्त पड़े पर गजभर कपड़ा,
देने वाला कोई नहीं।।
Singer – Suresh Awasthi Ji
Upload By – Dashrath Bandewar
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