जिनके राम भरोसा भारी,
दोहा – सतगुरु दयाल मुझ पर मेहर करी,
तब ज्ञान का दीपक जारा,
भ्रम अंधेरा मिट गया,
चहु दिश भया उजियारा।
रेण दिवस टूटे नहीं,
ज्यूँ लगी तेल संग धारा,
दास पलटू कहे ज्ञान दृष्टि सू देखियों,
घट घट में ठाकुर द्वारा।
राम के नाम की कोई निंदा करे,
पार ब्रह्म से कर्म हैं माठा,
भावबिन चांतरा देवरा धोक देता फिरे,
तेल सिंदूर ले रंगे भाटा।
जीव जागे नहीं शब्द लागे नहीं,
भेड़ रा पूत ज्यूँ कीना भेका,
कहे कबीर वो अधमी जीवड़ा,
जमड़ा रा देश में जावे नाटा।
जिनके राम भरोसा भारी,
उनको डर नहीं लागे रे,
भूत पलीत डाकण और स्यारी,
देखत दूरा भागे रे।।
और विघ्न की कौन चलायी,
जम नेड़ा नहीं आवे रे,
हरि भगतां ने देखत डरपे,
निव कर पाछा जाही रे।।
प्रथम साख पंखेरू री कहिये,
समर्थ सांही उतारे रे,
काळ ने महाकाल खायगो,
एक पलक में तारे रे।।
जो उपदेश दियो मेरे दाता,
मैं वारी कथा निहारु रे,
कष्ट पड़े जद और न जांचू,
मैं रसना राम उच्चारु रे।।
हरि का भजन बिना कबहु नहीं उबरे,
कोटि जतन कर लीजो रे,
जनध्रुवदास सतगुरु का शरणा,
निर्भय होय भज लीजो रे।।
जिनके राम भरोंसा भारी,
उनको डर नहीं लागे रे,
भूत पलीत डाकण और स्यारी,
देखत दूरा भागे रे।।
स्वर – श्री सुखदेव जी महाराज।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052