जब से तुम संग लौ लगाई,
दोहा – रसना पे अगर,
तेरा नाम रहे,
जग में फिर नाम,
रहे ना रहे।
मन मंदिर में,
घनश्याम रहे,
झूठा संसार,
रहे ना रहे।
दिन रेन हरि का,
नाम रहे,
कोई और फिर,
ध्यान रहे ना रहे।
तेरी किरपा का,
अभिमान रहे,
कोई और अभिमान,
रहे ना रहे।
जब से तुम संग लौ लगाई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,
मेरे राधारमण मेरे राधारमण,
मेरे राधारमण मेरे राधारमण।।
छा गई आँखों में दिल में,
बस तेरी दीवानगी,
तू ही तू बस दे दिखाई,
तू ही तू बस दे दिखाई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,
जबसे तुम संग लौ लगाई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ।।
बांकी चितवन सांवरी,
मनमोहनी सूरत तेरी,
जबसे दिल में है समाई,
जब से दिल में है समाई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,
जबसे तुम संग लौ लगाई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ।।
अब तलक है गूंजती,
बांसुरी वो रसमई,
तान जो तुमने सुनाई,
तान जो तुमने सुनाई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,
जबसे तुम संग लौ लगाई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ।।
ना तमन्ना दौलतों की,
शोहरतों की दास को,
नाम की करते कमाई,
नाम की करते कमाई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,
जबसे तुम संग लौ लगाई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ।।
जबसे तुम संग लौ लगाई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,
मेरे राधारमण मेरे राधारमण,
मेरे राधारमण मेरे राधारमण।।
स्वर – चित्र विचित्र जी महाराज।