जब भी विपदा आई मैंने,
श्याम को याद किया,
खाटू वाले श्याम का ही बस,
मुख से नाम लिया,
दीनदयालु के होते भी,
जब मन था घबराया,
देख मेरी व्याकुलता को,
बाबा भी रुक ना पाया,
वो लिले चढ़ आया,
वो लिले चढ़ आया,
श्याम ना रुक पाया,
वो लिले चढ़ आया।।
तर्ज – उड़ जा काले कावा।
ठोकर जितनी खाई मैंने,
अपने जीवन में,
हँसता था बाहर से पर मैं,
रोता था मन में,
मेरे मन की पीड़ा को,
जब कोई पढ़ ना पाया,
देख मेरी व्याकुलता को,
बाबा भी रुक ना पाया,
वो लिले चढ़ आया,
वो लिले चढ़ आया,
श्याम ना रुक पाया,
वो लिले चढ़ आया।।
कलयुग के अवतारी बाबा,
भी ये कहते है,
कर्मो के कारण मेरे प्रेमी,
दुःख सहते है,
अपनी करनी पर मायूसी,
में था जब पछताया,
देख मेरी व्याकुलता को,
बाबा भी रुक ना पाया,
वो लिले चढ़ आया,
वो लिले चढ़ आया,
श्याम ना रुक पाया,
वो लिले चढ़ आया।।
जिम्मेदारी थी मुझ पर,
परिवार चलाने की,
लेकिन क्या थी लाचारी,
हिम्मत ना बताने की,
हारे नैनो में ‘प्रकाश’ के,
जब कतरा बह आया,
देख मेरी व्याकुलता को,
बाबा भी रुक ना पाया,
वो लिले चढ़ आया,
वो लिले चढ़ आया,
श्याम ना रुक पाया,
वो लिले चढ़ आया।।
जब भी विपदा आई मैंने,
श्याम को याद किया,
खाटू वाले श्याम का ही बस,
मुख से नाम लिया,
दीनदयालु के होते भी,
जब मन था घबराया,
देख मेरी व्याकुलता को,
बाबा भी रुक ना पाया,
वो लिले चढ़ आया,
वो लिले चढ़ आया,
श्याम ना रुक पाया,
वो लिले चढ़ आया।।
Singer / Lyrics – Prakash Mishra
बहुत सुन्दर,