हम सब है कठपुतली,
तेरे हाथो में है डोर,
नचा ले कान्हा जैसे,
नाचे है वन में मोर।।
तर्ज – सावन का महीना।
तुझपे भरोसा मुझे,
तेरा ही सहारा,
डूबी हुई नैय्या का,
तू ही बस किनारा,
थाम ले मेरी बइया,
दुख के बादल है घनघोर,
नचा ले कान्हा जैसे,
नाचे है वन में मोर।।
जग में जो नाचा बाबा,
नाचता रहूँगा,
दुखो के थपेड़े बोलो,
कब तक सहूँगा,
और सहा ना जाए,
अब पकड़ूँ किसका छोर,
नचा ले कान्हा जैसे,
नाचे है वन में मोर।।
‘रूबी रिधम’ ने तेरी,
टेर लगाई,
हर पल बाबा तेरी,
महिमा है गाई,
मुझको भी शरण में रख लो,
मेरा तुझ बिन ना कोई और,
नचा ले कान्हा जैसे,
नाचे है वन में मोर।।
हम सब है कठपुतली,
तेरे हाथो में है डोर,
नचा ले कान्हा जैसे,
नाचे है वन में मोर।।
स्वर – काँची भार्गव।