हम जाने वाले पंछी,
मत हमसे प्रीत लगाना।
दोहा – राजा राणा सब चले,
चले राव और रंक,
महल मंदिर सब ही चले,
चले कोट गढ़ बंक।
नार रुप रम्भा चले,
दासी चले खवास,
रामदास हरि नाम बिना,
सब ही जोग विलास।
हम जाने वाले पंछी,
मत हमसे प्रीत लगाना,
मत हमसे प्रीत लगाना,
मत हमसे प्रीत लगाना,
हम जाने वाले पँछी,
मत हमसे प्रीत लगाना।।
लोक लाज तज भए भिखारी,
लिया फकीरा बाना,
आज यहाँ कल और कही है,
भीख मांग कर खाना,
हम जाने वाले पँछी,
मत हमसे प्रीत लगाना।।
रूखी सूखी प्रीत हमारी,
धोखे में मत आना,
निर्मोही कहे लोग पुकारे,
मैं फकीर मस्ताना,
हम जाने वाले पँछी,
मत हमसे प्रीत लगाना।।
मैं पंछी अब जाना चाहूँ,
मुझको करो रवाना,
आखिर मेरी यही विदाई,
प्रेम नहीं ठुकराना,
हम जाने वाले पँछी,
मत हमसे प्रीत लगाना।।
परम पुरुष की यही विदाई,
आखिर यहाँ से जाना,
कहत कबीर प्रेम भर मिलियो,
कल को कौन ठिकाना,
हम जाने वाले पँछी,
मत हमसे प्रीत लगाना।।
हम जाने वाले पँछी,
मत हमसे प्रीत लगाना,
मत हमसे प्रीत लगाना,
मत हमसे प्रीत लगाना,
हम जाने वाले पँछी,
मत हमसे प्रीत लगाना।।
स्वर – संत श्री सुखराम जी महाराज।
Upload By – Keshav