हे नारायण स्वामी,
ईश्वर अन्तर्यामी,
क्या मांगे हम तुझसे,
तुम स्वयं प्रभु दानी।।
पत्थर में जीव का पेट भरे,
दरिया में विचरण जीव करे,
नव उड़त फिरत खग है चहु ओर,
नव उड़त फिरत खग है चहु ओर,
तेरी संध्या तेरी ही भोर।
हे नारायण स्वामि,
ईश्वर अन्तर्यामी,
क्या मांगे हम तुझसे,
तुम स्वयं प्रभु दानी।।
ऊँचे पर्वत पे बाग़ लगे,
फूलों के संग है कांटे सजे,
चले पवन बसंती रसवंती,
चले पवन बसंती रसवंती,
मदमाती धरा दर्शन चहुँ ओर।
हे नारायण स्वामि,
ईश्वर अन्तर्यामी,
क्या मांगे हम तुझसे,
तुम स्वयं प्रभु दानी।।
कोयल कागा दोनो काले,
कोयल सुत को कागा पाले,
कर मन की गति न्यारी साधो,
कर मन की गति न्यारी साधो,
प्रभु लीला का कोई और न छोर।
हे नारायण स्वामि,
ईश्वर अन्तर्यामी,
क्या मांगे हम तुझसे,
तुम स्वयं प्रभु दानी।।
हे नारायण स्वामी,
ईश्वर अन्तर्यामी,
क्या मांगे हम तुझसे,
तुम स्वयं प्रभु दानी।।
एल्बम
“म्हारा सांवरिया गिरधारी”
गायक
“श्री सम्पत दाधीच”
संगीत
“श्री सतीश देहरा”
संपर्क
+91 98280 65814
Mast bhajan hai me to sunkar nihal ho Gaya