हरि भजने पे तन ये पाओगे,
बचना चाहे तो बचले रे प्राणी,
वर्ना चौरासी में तो जाओगे,
हरि भजने पे तन ये पाओगे।।
तर्ज – तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे।
जग में आया था तेरा कोई न था,
आज कैसे यह रिश्तेदार हूऐ,
ये ही एक दिन तुझे जला देँगे,
कैसे तेरे यह रिश्तेदार हुऐ,
झूठी दुनिया है झूठे नाते है,
खुद कमाओगे तब ही खाओगे,
हरि भजने पे तन ये पाओगे।।
कौन कहता प्रभू नही मिलते,
देखो जाकर गुरू के चरणो मे,
लेले चाबी कोई गुरू से जो,
गुप्त रख्खि गुरू ने चरणो मे,
गुरू चरणो मे सर झुकाओगे,
खुद को प्रभू के करीब पाओगे,
हरि भजने पे तन ये पाओगे।।
तू ने वादा किया था सतगुरू से,
नाम तेरा कभी न छूटेगा,
अपने कर्मो से ही बँधा प्राणी,
अपने कर्मो से ही तू छूटेगा,
वादा सतगुरु से जो निभाओगे,
गुरू चरणो की रज को पाओगे,
हरि भजने पे तन ये पाओगे।।
हरि भजने पे तन ये पाओगे,
बचना चाहे तो बचले रे प्राणी,
वर्ना चौरासी में तो जाओगे,
हरि भजने पे तन ये पाओगे।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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