आदियोगी,
दूर उस आकाश की गहराइयों में,
इक नदी से बह रहे हैं आदियोगी,
शून्य सन्नाटे टपकते जा रहे हैं,
मौन से सब कह रहे हैं आदीयोगी,
योग के इस स्पर्श से अब,
योगमय करना है तन मन,
सांस शाश्वत सनन सननन,
प्राण गुंजन घनन घननन,
उतरे मुझ में आदियोगी,
योग धारा छलक छनछन,
सांस शाश्वत सनन सननन,
प्राण गुंजन घनन घननन,
उतरे मुझ में आदीयोगी,
उतरे मुझ में आदीयोगी।।
पीस दो अस्तित्व मेरा,
और कर दो चूरा चूरा,
पूर्ण होने दो मुझे और,
होने दो अब पूरा पूरा,
भस्म वाली रस्म कर दो आदीयोगी,
योग उत्सव रंग भर दो आदीयोगी,
बज उठे ये मन सितारी,
झनन झननन झनन झननन,
सांस शाश्वत सनन सननन,
प्राण गुंजन घनन घननन,
सांस शाश्वत सनन, सननन,
प्राण गुंजन घनन घननन,
उतरे मुझ में आदियोगी,
योग धारा छलक छनछन,
सांस शाश्वत सनन सननन,
प्राण गुंजन घनन घननन,
उतरे मुझ में आदीयोगी,
उतरे मुझ में आदीयोगी।।
गायक – कैलाश खेर जी।
लेखक – प्रसून जोशी जी।
प्रेषक – अजय प्रजापत जी।