ढाई अक्षर प्रेम का है,
रीझे प्रेम से बाबोसा,
प्रेम करो हर प्राणी से,
ये बोल रही है बाईसा।।
जिस घर में हो प्रेम परस्पर,
उस घर मे आते भगवान,
साग विदुर घर खाया कृष्ण ने,
छोड़ दिये छप्पन पकवान,
प्रेम की गंगा बहाते चलो तुम,
प्रेम से उठे न भरोसा,
प्रेम करो हर प्राणी से,
ये बोल रही है बाईसा।।
प्रेम से करना साधना तुम,
करना प्रेम से ही भक्ति,
प्रेम के वश में आये बाबोसा,
प्रेम में ही ऐसी शक्ति,
प्रेम से सारे काम बनेगे,
काम न आवे ये पैसा,
प्रेम करो हर प्राणी से,
ये बोल रही है बाईसा।।
बाबोसा की भक्ति करलो,
प्रेम का दीप जलाकर के,
राग द्वेष की भावना,
एक दूजे से मिटाकर के,
‘दिलबर’ फिर जीवन जीने की,
आ जायेगी परिभाषा,
प्रेम करो हर प्राणी से,
ये बोल रही है बाईसा।।
ढाई अक्षर प्रेम का है,
रीझे प्रेम से बाबोसा,
प्रेम करो हर प्राणी से,
ये बोल रही है बाईसा।।
गायिका – सुजाता त्रिवेदी जी।
रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
नागदा जक्शन म.प्र. 9907023365