देखो जी मोपे,
सतगुरू भली रे विचारी,
भवसागर से तार दिया है,
कर दी मोक्ष हमारी,
देखों जी मोपे,
सतगुरू भली रे विचारी।।
सतगुरू मेरा मैं सतगुरू का,
युगन युगन गुरुधारी,
असंग युगा री प्रीत आगली,
अब के लियो हे उबारी,
देखों जी मोपे,
सतगुरू भली रे विचारी।।
गुरू बिन जीव पशु ज्यूँ होता,
सो गुरू हम ते तारे,
डुबत गे्ंद तिरीयो भव सागर,
सतगुरू दी सनकारी,
देखों जी मोपे,
सतगुरू भली रे विचारी।।
सतगुरू किरपा किनी मोपे,
निंदरा कर दी न्यारे,
उठत बैठत तार ना टुटे,
सोवत जागत तारे,
देखों जी मोपे,
सतगुरू भली रे विचारी।।
अवगुण दुर कियो मेरे सतगुरू,
गुण किनो है भारी,
नवला रे नेम कभी नही छूटे,
भगत अनंत ऊबारी,
देखों जी मोपे,
सतगुरू भली रे विचारी।।
देखो जी मोपे,
सतगुरू भली रे विचारी,
भवसागर से तार दिया है,
कर दी मोक्ष हमारी,
देखों जी मोपे,
सतगुरू भली रे विचारी।।
स्वर – दिलीप जी गवैया।
प्रेषक – दिनेश दास जी।
साहपुरा जीला जयपुर
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