छोड़ के खाटू नगरी को,
मेरे घर आ जाओ श्याम,
मैं निर्धन बालक हूँ तेरा,
तुम मेरे घनश्याम।।
तर्ज – चांदी जैसा रंग है।
तिनका तिनका जोड़ सांवरे,
मैंने इसे बनाया,
प्रेम साधना और भक्ति से,
इसको खूब सजाया,
बड़े चाव से हे सांवरिया,
तुमको आज बुलाया,
दुनिया की परवाह नहीं,
बस मुझको तुमसे काम,
मैं निर्धन बालक हूँ तेरा,
तुम मेरे घनश्याम।
छोड़ के खाटु नगरी को,
मेरे घर आ जाओ श्याम,
मैं निर्धन बालक हूँ तेरा,
तुम मेरे घनश्याम।।
रुखा सूखा श्याम दिया जो,
उसका भोग लगाऊं,
सूखा साग विदुर घर खाओ,
मेरे घर भी आओ,
धन्ना जाट का मेरे श्याम बिन,
बीज खेत उपजाओ,
कर्मा बाई खीचड़ लाई,
जग में उसका नाम,
मैं निर्धन बालक हूँ तेरा,
तुम मेरे घनश्याम।
छोड़ के खाटु नगरी को,
मेरे घर आ जाओ श्याम,
मैं निर्धन बालक हूँ तेरा,
तुम मेरे घनश्याम।।
आँखों में मेरी सूखे आंसू,
बाट निहारुं तेरी,
याद में तेरी तड़प रहा हूँ,
हो ना जाए देरी,
आगे श्याम खड़ा हो बेशक,
काया हो जाए ढेरी,
बस तेरे चक्कर में बाबा,
‘माहि’ है बदनाम,
मैं निर्धन बालक हूँ तेरा,
तुम मेरे घनश्याम।
छोड़ के खाटु नगरी को,
मेरे घर आ जाओ श्याम,
मैं निर्धन बालक हूँ तेरा,
तुम मेरे घनश्याम।।
छोड़ के खाटू नगरी को,
मेरे घर आ जाओ श्याम,
मैं निर्धन बालक हूँ तेरा,
तुम मेरे घनश्याम।।
स्वर – काजल।