छाई सावन की घटा,
कांधे पे कांवड़ उठा,
ध्यान चरणों में लगा,
चल शिव के द्वारे।।
तर्ज – जब चली ठंडी हवा
शिव बड़े दातार है,
जाने क्या से क्या करे,
भक्त जो महाकाल का,
काल से वो क्यों डरे,
चल जरा विनती सुना,
बिगड़ी अपनी ले बना,
कांधे पे कांवड़ उठा,
चल शिव के द्वारे।
छायी सावन की घटा,
कांधे पे कांवड़ उठा,
ध्यान चरणों में लगा,
चल शिव के द्वारे।।
दे दी थी लंकेश को,
सोने की लंका दान में,
छोड़कर कर महलो के सुख,
जो रहे शमशान में,
गंगा जल उनको चढ़ा,
भाग्य ले अपना जगा,
कांधे पे कांवड़ उठा,
चल शिव के द्वारे।
छायी सावन की घटा,
कांधे पे कांवड़ उठा,
ध्यान चरणों में लगा,
चल शिव के द्वारे।।
श्याम सुन्दर भोले बाबा,
को मना कर देख ले,
‘लख्खा’ के संग तू भी कांवड़,
चल उठाकर देख ले,
फिर काम चाहे जो करा,
झोली क्या झोले भरा,
कांधे पे कांवड़ उठा,
चल शिव के द्वारे।
छाई सावन की घटा,
कांधे पे कांवड़ उठा,
ध्यान चरणों में लगा,
चल शिव के द्वारे।।