चेतावनी कुंडलियाँ देसी लिरिक्स,
1. ज्ञान बढ़े गुणवान की संगत,
ध्यान बढ़े तपसी संग कीना।
मोह बढ़े परिवार की संगत,
लोभ बढ़े धन में चित दीना।
क्रोध बढ़े नर मूढ़ की संगत,
काम बढ़े तिरिया संग कीना।
बुद्धि विवेक विचार बढ़े,
कवि दीन कहे सज्जन संग कीना।।
2. ज्ञान घटे नर मूढ़ की संगत,
ध्यान घटे बिन धीरज आया।
क्रोध घटे सु साधु की संगत,
रोग घटे कुछ ओगध खाया।
पीठ दिखावत प्रीत घटे,
मान घटे पर घर नित जाया।
काट सरी तलवार घटे,
बुद्धि घटे बहु भोजन खाया।
बेताल कहे सुणो नर विक्रम,
पाप घटे हरि गुण गाया।।
3. नमे शील सन्तोष,
नमे कुलवंती नारी।
नमे तीर कबाण,
नमे गज बैल असवारी।
अरे कसनी में सोनो नमे,
दान दे दातार नमे।
सूखों लकड़ अबूझ नर,
भाग पड़े पर नी नमे।।
4. कैसी शशि बिन रेण,
कैसो भाण बिन पगड़ो।
कैसो बाप सू बेर,
कैसो भाई सू झगडों।
केसों बूढ़े सू आळ,
कैसो बालक सू हासो।
कैसी नुगरां री प्रीत,
केसों बेरी घर वासों।
बहता नाग जो छेड़िये,
जो पूंछ पटक पाछा फिरे।
कवि गंग कहे सुण शाह अकबर,
ऐड़ा काम तो मूर्ख करे।।
5. लोभी भलो न मिंत,
भलो नी निर्धन सालो।
ठाकुर भलो न जार
लोफर भलो नी चोर रुखालो।
भोरों भलो न होय,
काल में पालन जो बांधे।
सगो भलो नी होय,
रात दिन छाती रांधे।
पिता भलो नी होय,
राखदे कन्या कंवारी।
पुत्र भलो नी होय,
सीखले चोरी जारी।
पुत्री भली नी होय,
पीहर में सिणगार सजावे।
पत्नी भली नी होय पति,
पहला भोजन पावे।
जवांई भलो नी सासरे,
घटे जी उण रो कायदों।
बेताल कहे सुणो नर विक्रम,
इतरा में नहीं फायदो।।
6.चाले दड़बड़ चाल,
दीखती डाकण दीसे।
रांधे धान कु धान,
पीसणो मोटो पीसे।
दलिये रा दो फाड़,
थूक दे रोटी सांधे।
नहीं घाघरे घेर,
नहीं कांचली रे कस बांधे।
उघाड़ो राखे ओजरो,
आडो करे नी पलो।
गिरधर कह कवि राय,
ऐड़ी लुगाई बिना कंवारो ई भलो।।
7. रामचरण महाराज को,
कठिन त्याग वैराग।
सुता सिंघ जगाविये,
उठे पलीता आग।
उठे पलीता आग धार,
खांडे री भेणा।
काजल के घर माय,
ऊजले कपड़े रेणा।
उजले कपड़े रेवणा,
नहीं लागण देणो दाग़।
रामचरण महाराज को,
कठिन त्याग वैराग।।
8. तारों की तेज में चंद छिपे नी,
सूरज छिपे नी बादल छाया।
चंचल नारी के नैण छिपे नी,
प्रीत छिपे नी पूठ दिखाया।
रण चढ़िया रजपूत छिपे नी,
दातार छिपे नी घर माँगत आया।
कवि गंग कहे सुण शाह अकबर,
कर्म छिपे नी भभूत लगाया।।
9. माता कहे मेरो पूत सपूत हैं,
बहन कहे मेरा सुंदर भैया।
तात कहे मेरो हैं कुल दीपक,
लोक में नाम अधिक बढ़ेया,
नारी कहे मेरा प्राणपति हैं,
जिनके जाके मैं लेउ बलैया।
कवि गंग कहे सुण शाह अकबर,
सबके गांठ सफेद रुपैया।।
10. दिन छुपे तिथि वार घटे,
सूर्य छिपे ग्रहण को छायो।
गजराज छुपे सिंह को देखत,
चाँद छुपत अमावस आयो।
पाप छुपत हरि नाम जपे,
कुल छुपत कपूत के जायो।
कवि गंग कहे सुण शाह अकबर,
कर्म ना छुपेगो छुपो छुपायो।।
11. बाळ से आळ बूढ़ा से विरोध,
कुलक्षणी नार से ना हंसिये।
ओछे की प्रीत, गुलाम की संगत,
औघट घाट में ना धँसीये।
बैल की नाथ घोड़े की लगाम,
हस्ती को अंकुस से कसिये।
कवि गंग कहे सुण शाह अकबर,
कूड़ से सदा दूर बसिये।।
12. बाज़िन्द तेरी क्या ओकात,
छुणावे मालिया।
थारे जेड़ा जीव,
जंगल में सियालिया।
कुरजां ज्यूँ कुकन्द,
दिवाड़ो रोज रे।
अरे हाँ बाज़िन्द हाथी सा,
मर जाय मंडे नहीं खोज रे।।
13. तात मिले पुनि मात मिले,
सुत भ्रात मिले युवती सुखदायी।
राज मिले गज बाज मिले,
सब साज मिले मन वांछित पाई।
लोक मिले परलोक मिले,
विधि लोक मिले बैकुण्ठ जाई।
सुंदर और मिले सब ही सुख,
सन्त समागम दुर्लभ भाई।।
14. रोहिड़े रो फूल,
वनी में खीलियों।
आ कंचन सी हैं काया,
हरि क्यूं भूलियों।
फूल गयो कुमलाय,
कली भी जावसी।
रे बाज़िन्द इण बाड़ी रे माय,
भँवर कदे ना आवसी।।
15. सदा रंक नहीं राव,
सदा मृदङ्ग नहीं बाजे।
सदा धूप नहीं छाँव,
सदा इंद्र नहीं गाजे।
सदा न जोबन थिर रहे,
सदा न काला केश।
बेताल कहे सुणो नर विक्रम,
सदा न राजा देश।।
16. मिनख मिनख सब ऐक हैं,
जाणे लोक व्यवहार।
पापी पशु समान हैं,
भजनी पुरुष अवतार।
भजनी पुरुष अवतार जका,
नर मुक्ति पासी।
पापी पड़सी नरक में,
मार जमो री खासी।
इतरा फर्क सगराम कहे,
सुण लीजो नर नार।
मिनख मिनख सब एक हैं,
जाणे लोक व्यवहार।।
17. इतरा से बेर ना कीजिये,
गुरु पंडित कवि ज्ञान।
बेटा वनिता बावरिया,
यज्ञ करावण हार।
यज्ञ करावण हार,
मंत्री राजा का होई।
विप्र,पड़ोसी,वेद,
तपे आपके रसोई।
कह गिरधर कवि राय,
युगनते चली आई।
इन तेरह से हँसते रहो,
बनी बनी के सांई।।
18. बादशाह री सेज बणी,
पतरणा पाट का।
हीरा जड़िया हैं जड़ाव,
पाया हैं ठाठ का।
हूरमा खड़ी हजूर,
करत ये बंदगी।
अरे हॉ बाज़िन्द बिन भजिया,
भगवान पड़ेला गंदगी।।
19. बंकर किला बणाय कर,
तोपा साजिया।
ऊपर मुगल द्वार,
के पेही ताजिया।
नित पथ आगे आय,
नाचन्ति नायका।
अरे हाँ बाज़िन्द उसको ले गये,
उखाड़ दूत जम रायका।।
20. राख परवाह एक निज नांव की,
खलक मैदान में बांधले ताटी।
मीर उमराव पावणों हैं चार दिन को,
सब छोड़ चलेगा दौलत और हाथी।
दास पलटू कहे देखो संसार गति,
निज नाम बिना तेरो संग हैं न कोई साथी।।
21. सिंघ जो भूखा रहे,
चरे नहीं घास को।
हंस पीवे नहीं नीर,
करे उपवास को।
साध सती और शूरमा,
ये पाँच हैं काम के।
अरे हां पलटू सन्त नहीं जांचे,
जगत भरोसे राम के।।
22. यार फकीरों तुम पड़े हो,
किस ख्याल में।
संग में लगी पांच,
पचीस तीस नारी।
ऐसे ज्ञान से होता,
नरक भी भारी।
पचीस के कारण,
भिक्षा मांगते हो,
एक ने कौन तकलीफ मारी,
दास पलटू कहे एक,
ये खेल नहीं बन्दा,
जब छूटे ये तीसू ही नारी।।
23. ब्रह्मानंद परमात्मा भाई,
भजले बारम्बार।
वादा किया गर्भ वास में,
बिसर जन हुआ गवार।
बिसर जन हुआ गवार,
कोल कीना भारी।
उम्र बीती जाय,
जपले कृष्ण मुरारी।
अब तो चेत बावला,
झट पट हो हुशियार।
ब्रह्मानंद परमात्मा भाई,
भजले बारम्बार।।
24. तोड़े पुन री पाळ,
कमावे पाप को।
साला निवत जिमाय,
धक्का दे बाप को।
चढ़े परणी री भीड़,
गाळ दे बहन को।
अरे हां बाज़िन्द वे नर,
नरका जाय,
ठौड़ नहीं रेहण को।।
25. मूर्ख रे मुख बम्ब हैं,
निकसे भेण भुजंग।
उनकी ओषध मौन हैं,
विष नहीं व्यापे अंग।
कह कर वचन कठोर,
खुरड़ मत छोलिये।
शीतल राख स्वभाव,
वाणी शुध्द बोलिये।
आपे ही शीतल होय,
ओरों को कीजिये।
अरे हाँ बाज़िन्द कहे,
सुण रे म्हारा मित,
बलती में पूला मत दीजिये।।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर
9785126052
बहुत ही सुंदर रचना
बहुत ही अच्छा भजन
बहुत ख़ूब