चले गये सतगुरू,
कौन से जहान में,
रहता है कैसे शिष्य,
गुरू बिन जहान में,
डुडंता फिरूं उन्हें मैं,
अब कहां कहां में,
चले गए सतगुरू,
कौन से जहान में।।
तर्ज – छुप गया कोई रे।
गलि कुचे डुंड फिरा,
पाया पता ना,
चले गये कौंन देस,
हमको पता ना,
छोड़ मझधार फिर भी,
रख़ा ख़्याल है,
चले गए सतगुरू,
कौन से जहान में।।
श्यामा श्याम रटते रटते,
जीवन की शाम आई,
अन्तं समय में मेरे,
यही गंगा काम आई,
‘धसका’ को पागल,
बनाया इस जहांन में,
चले गए सतगुरू,
कौन से जहान में।।
चले गये सतगुरू,
कौन से जहान में,
रहता है कैसे शिष्य,
गुरू बिन जहान में,
डुडंता फिरूं उन्हें में,
अब कहां कहां में,
चले गए सतगुरू,
कौन से जहान में।।
।श्री हरिदास।
गायक / प्रेषक – धसका जी पागल।
07206526000