भरा सत्संग का दरिया नहालो जिसका जी चाहे भजन लिरिक्स

भरा सत्संग का दरिया,
नहालो जिसका जी चाहे।।

दोहा – एक घड़ी आधी घड़ी,
आधी में पुनिआध,
तुलसी सत्संग साध कि,
कटे करोड़ अपराध।



भरा सत्संग का दरिया,

नहालो जिसका जी चाहे।।



द्वारका काशी जावोगे,

गया प्रयाग न्हावोगे,
नहीं वहाँ मोक्ष पावोगे,
फिर आना जिसका जी चाहे,
भरा सत्संग का दरियाँ,
नहालो जिसका जी चाहे।।



तीर्थ कहूं ऐसा नहीं होवै,

पुराण और ग्रंथों में गावे,
अगर्च निश्चय नहिं होवे,
बचाना जिसका जी चाहे,
भरा सत्संग का दरियाँ,
नहालो जिसका जी चाहे।।



समागम सन्तों का होवे,

पाप जन्मांत्र का खोवे,
जिगर दिल दाग सब धोवे,
धुपाना जिसका जी चाहे,
भरा सत्संग का दरियाँ,
नहालो जिसका जी चाहे।।



भारती कल्याण यों गावे,

सदा सत्संग मन भावे,
सत्संग से मोक्ष पद पावे,
कराना जिसका जी चाहे,
भरा सत्संग का दरियाँ,
नहालो जिसका जी चाहे।।



भरा सत्संग का दरियाँ,

नहालो जिसका जी चाहे।।

गायक / प्रेषक – मनोहर परसोया।
कविता साउँण्ड किशनगढ़।


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Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

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