बांके बिहारी जी के,
भक्तो को मेरा प्रणाम,
लिखा है जिन्होंने,
जीवन बिहारी जी के नाम,
ब्रज मंडल के संतो को मेरा प्रणाम,
लिखा है जिन्होंने,
जीवन बिहारी जी के नाम।।
तर्ज – सोलह बरस की।
वो नाम देव की मस्ती,
बैठा है भुला के हस्ती,
कण कण में दिख रहा प्यारा,
कुकर में रूप निहारा,
विठ्ठल विठ्ठल गाते गाते,
कर दी जीवन की शाम,
लिखा है जिन्होंने,
जीवन बिहारी जी के नाम।।
वो धन्ना भक्त अनोखा,
पत्थर में हरी को देखा,
हरी दौड़े दौड़े आए,
खेतो में हल को चलाए,
निर्मल हृदय से पुकारा,
उसने हरी का नाम,
लिखा है जिन्होंने,
जीवन बिहारी जी के नाम।।
इक प्रेम दीवानी मीरा,
कोई समझ ना पाया पीड़ा,
ऐसी भई श्याम दीवानी,
हुई उसकी अमर कहानी,
पि गई विष का प्याला,
लेके गिरवर धारी का नाम,
लिखा है जिन्होंने,
जीवन बिहारी जी के नाम।।
हरी भक्तो के गुण जो गाए,,
उन्हें सहज हरी मिल जाए,
भवसागर से तरने का,
नहीं दूजा कोई उपाय,
‘चित्र-विचित्र’ हरी,
भक्तो के रहेंगे गुलाम,
लिखा है जिन्होंने,
जीवन बिहारी जी के नाम।।
बांके बिहारी जी के,
भक्तो को मेरा प्रणाम,
लिखा है जिन्होंने,
जीवन बिहारी जी के नाम,
ब्रज मंडल के संतो को मेरा प्रणाम,
लिखा है जिन्होंने,
जीवन बिहारी जी के नाम।।