बाजे रे मुरलिया बाजे,
दोहा – विमुख शिखर से धारा धाये,
राधा हरि सम्मुख लाये,
बाँसुरिया हरि साँवरिया की,
राधा गोरी सुनवा रे।
बाजे रे मुरलिया बाजे,
अधर धरे मोहन मुरली पर,
होंठ पे माया बिराजे,
बाजे रे मूरलिया बाजे,
बाजे रे मूरलिया बाजे।।
हरे हरे बांस की बनी मुरलिया,
मर्म मर्म को छुए अंगुरिया।
चंचल चतुर अंगुरिया जिस पर,
कनक मुन्दरिया साजे,
बाजे रे मूरलिया बाजे,
बाजे रे मूरलिया बाजे।।
पीली मुंदरी अंगूरी श्याम,
मुंदरी पर राधा का नाम,
आँखर देखे सुने मधुर स्वर,
राधा गोरी लाजे,
बाजे रे मूरलिया बाजे,
बाजे रे मूरलिया बाजे।।
भूल गई राधा भरी गगरिया,
भूल गए गौ-धन को सांवरिया,
जाने ना जाने कह दो जाने,
जाने अग जग राजे,
बाजे रे मूरलिया बाजे,
बाजे रे मूरलिया बाजे।।
बाजे रे मुरलिया बाजे,
अधर धरे मोहन मुरली पर,
होंठ पे माया बिराजे,
बाजे रे मूरलिया बाजे,
बाजे रे मूरलिया बाजे।।
स्वर – पं. श्री भीमसेन जोशी एवं लता जी।
प्रेषक – सुरेश कुमार खोड़ा झोटवाड़ा जयपुर।
अति सुन्दर!
संसार में इससे सुंदर गीत नही हो सकता है। इस संसार के सर्वश्रेष्ठ गायकों द्वारा गाया गया राधा कृष्ण के प्रेम को प्रदर्शित करता यह गीत जब तक ये सृष्टि रहेगी तब तक सुनाया जाता रहेगा।
प्रणाम है दोनो अमर आत्माओं पंडित भीमसेन जोशी जी और लता मंगेशकर जी को।