बहे सत्संग का दरिया नहा लो जिसका जी चाहे भजन लिरिक्स

बहे सत्संग का दरिया,
नहा लो जिसका जी चाहे,
करो हिम्मत लगा डुबकी,
नहा लो जिसका जी चाहे,
बहे सत्संग का दरीया,
नहा लो जिसका जी चाहे।।

तर्ज – जगत के रंग क्या देखूं।



हजारो रंग है इसमें,

एक से एक बढ़ आला,
नहीं कोई डर बीमारी का,
नहीं कोई डर बीमारी का,
लगा लो जितना जी चाहे,
बहे सत्संग का दरीया,
नहा लो जिसका जी चाहे।।



खजाना वो मिले इसमें,

नहीं मुमकिन ज़माने में,
नहीं मुमकिन ज़माने में,
किसी का डर नहीं कुछ भी,
उठा लो जितना जी चाहे,
बहे सत्संग का दरीया,
नहा लो जिसका जी चाहे।।



मिटे संसार का चक्कर,

लगे नहीं मौत की टक्कर,
लगे नहीं मौत की टक्कर,
करे है पार भव सागर,
करा लो जिसका जी चाहे,
बहे सत्संग का दरीया,
नहा लो जिसका जी चाहे।।



बना दे चोर से साधु,

मिटा दे दुष्टता मन की,
मिटा दे दुष्टता मन की,
कटे जड़ मूल पापो का,
कटा लो जिसका जी चाहे,
बहे सत्संग का दरीया,
नहा लो जिसका जी चाहे।।



बहे सत्संग का दरिया,

नहा लो जिसका जी चाहे,
करो हिम्मत लगा डुबकी,
नहा लो जिसका जी चाहे,
बहे सत्संग का दरीया,
नहा लो जिसका जी चाहे।।


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Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

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