ये हिरसो हवस की मंडी है,
दोहा – कोई आये कोई जाये,
ये तमाशा क्या है,
मैं तो समझा नही ये महफिले,
दुनिया क्या है।
ये हिरसो हवस की मंडी है,
अनमोल रतन बिक जाते है,
कागज के कड़कते नोटो पर,
दुनिया के चमन बिक जाते है,
ये हरश हवस की मंडी है,
अनमोल रतन बिक जाते है।।
हर चीज यहां पर बिकती है,
हर चीज का सौदा होता है,
इज्जत भी बेचीं जाती है,
ईमान ख़रीदे जाते है,
ये हरश हवस की मंडी है,
अनमोल रतन बिक जाते है।।
बिकते है मुल्लो के सजदे,
पंडित के भजन बिक जाते है,
बिकती है दुल्हन की रातें,
मुर्दो के कफन बिक जाते है,
ये हरश हवस की मंडी है,
अनमोल रतन बिक जाते है।।
ये हिरस हवस की मंडी है,
अनमोल रतन बिक जाते है,
कागज के कड़कते नोटो पर,
दुनिया के चमन बिक जाते है,
ये हरश हवस की मंडी है,
अनमोल रतन बिक जाते है।।
गायक – हल्केराम जी।
प्रेषक – रामस्वरूप लववंशी
8107512367