ऐ श्याम कृपा बरसा दो,
तेरे लायक मुझे बना दो,
मेरा मन उपवन है सुना,
प्रभु प्रेम के फूल खिला दो,
ऐं श्याम कृपा बरसा दों,
तेरे लायक मुझे बना दो।।
ना जाने इस जीवन में,
कितने अपराध हुए है,
कितने ही जनम अभी तक,
यूँ ही बर्बाद हुए है,
भटके हुए इस राही को,
कोई सच्ची राह दिखा दो,
मेरा मन उपवन है सुना,
प्रभु प्रेम के फूल खिला दो,
ऐं श्याम कृपा बरसा दों,
तेरे लायक मुझे बना दो।।
इन पैरो से चल कर के,
तेरे सत्संग में नहीं आया,
दुनिया के रंग सुहाए,
एक तेरा रंग ना भाया,
तेरा जनम जनम गुण गाउँ,
अब ऐसा रंग चढ़ा दो,
मेरा मन उपवन है सुना,
प्रभु प्रेम के फूल खिला दो,
ऐं श्याम कृपा बरसा दों,
तेरे लायक मुझे बना दो।।
कितने निर्मल मन वाले,
तूने मुझ से मिलवाये,
मैं मूरख समझ ना पाया,
अपने है कौन पराए,
जिनसे अपनापन तेरा,
उन अपनों से मिलवा दो,
मेरा मन उपवन है सुना,
प्रभु प्रेम के फूल खिला दो,
ऐं श्याम कृपा बरसा दों,
तेरे लायक मुझे बना दो।।
प्रभु मस्त हुए है कितने,
भक्ति का पीकर प्याला,
यदि एक बूँद तू दे दे,
हो जाऊ मैं मतवाला,
‘बिन्नू’ तुझमें रम जाए,
अब ऐसा स्वाद चखा दो,
मेरा मन उपवन है सुना,
प्रभु प्रेम के फूल खिला दो,
ऐं श्याम कृपा बरसा दों,
तेरे लायक मुझे बना दो।।
ऐ श्याम कृपा बरसा दो,
तेरे लायक मुझे बना दो,
मेरा मन उपवन है सुना,
प्रभु प्रेम के फूल खिला दो,
ऐं श्याम कृपा बरसा दों,
तेरे लायक मुझे बना दो।।
स्वर – रजनी जी राजस्थानी।