आज देखो शिवालय में कितने,
शिव के दर्शन को आए हुए है,
बस यही कामना को सजाये,
हम भी डेरा लगाए हुए है।।
चाल बहकी जटाएं भी बिखरी,
झूम कर मस्त डमरू की धुन पर,
इस तरह आ रहे वो भोले,
गांजे की दम लगाये हुए है।।
छोड़ दो आज नंदी सवारी,
भोले आ जाओ तुम नंगे पाओं,
आइये आपकी राह में हम,
अपनी पलकें बिछाए हुए है।।
जिसने शंकर का गुणगान गाया,
उसने मुँह माँगा वरदान पाया,
ऐसे दानी हैं जो भस्मासुर को,
भस्म कगन लुटाये हुए है।।
हम ना जायेंगे गंगा नहाने,
राज़ की बात है कौन जाने,
ऐ ‘पदम्’ मन के मंदिर में हम तो,
गंगा धारी बसाए हुए है।।
आज देखो शिवालय में कितने,
शिव के दर्शन को आए हुए है,
बस यही कामना को सजाये,
हम भी डेरा लगाए हुए है।।
लेखक / प्रेषक – डालचंद कुशवाह “पदम”
9827624524